रिपोर्ट:लक्ष्मण बिष्ट : लोहाघाट: सीबीएसई की एकदिवसीय कार्यशाला का हुआ आयोजन, विभिन्न विद्यालयों के शिक्षकों ने किया प्रतिभाग
लोहाघाट मे सीबीएसई की एकदिवसीय कार्यशाला का हुआ आयोजन, विभिन्न विद्यालयों के शिक्षकों ने किया प्रतिभाग
लोहाघाट (चम्पावत)।शिक्षा के बदलते परिदृश्य में शिक्षक की भूमिका केवल ज्ञान प्रदाता के साथ ही एक संवेदनशील मार्गदर्शक और अभिभावक के रूप में उभर रही है। इसी उद्देश्य को केंद्र में रखते हुए अल्पाइन कॉन्वेंट स्कूल, पाटन पाटनी में एजुकेटिंग पेरेंटिंग अबाउट एजुकेशन विषय पर एकदिवसीय शिक्षकीय कार्यशाला का भव्य आयोजन किया गया। इस विशेष वर्कशॉप में लोहाघाट, टनकपुर और चम्पावत क्षेत्रों से विभिन्न विद्यालयों के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की।कार्यक्रम का शुभारंभ विद्यालय के सभागार में हुआ, जहाँ सरस्वती वंदना और दीप प्रज्वलन के साथ कार्यशाला का औपचारिक उद्घाटन किया गया।इस अवसर पर विद्यालय के प्रबंधक डी.डी. जोशी एवं प्रधानाचार्या पूजा जोशी ने मुख्य अतिथियों और रिसोर्स पर्सन का हार्दिक स्वागत किया।उद्घाटन संबोधन में डी.डी. जोशी ने कहा कि “आज के समय में शिक्षा केवल पुस्तकों और अंकों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह मानवीय मूल्य, संवाद और सहयोग की यात्रा बन चुकी है। ऐसे में शिक्षकों का संवेदनशील होना और बच्चों के साथ अभिभावकीय दृष्टिकोण अपनाना अत्यंत आवश्यक है।”प्रधानाचार्या पूजा जोशी ने कहा कि “विद्यालय वह स्थान है जहाँ बच्चा अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण संस्कार प्राप्त करता है। शिक्षक यदि पैरेंटिंग के सिद्धांतों को शिक्षण में शामिल करें, तो शिक्षा का प्रभाव जीवनभर बना रहता है।”
कार्यशाला के रिसोर्स पर्सन केंद्रीय विद्यालय संगठन के पूर्व प्रधानाचार्य
बासुदेव ओली और जवाहर नवोदय चम्पावत के हरेंद्र ढेला ने अपने सत्रों के माध्यम से शिक्षकों को शिक्षा में ‘पैरेंटिंग एप्रोच’ अपनाने के व्यावहारिक उपाय बताए। उन्होंने कहा कि एक अच्छा शिक्षक वह होता है जो अपने विद्यार्थियों को केवल विषय नहीं सिखाता, बल्कि उन्हें जीवन की चुनौतियों से जूझने का साहस भी देता है।बासुदेव ओली ने शिक्षकों को बच्चों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समझने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हर बच्चा अलग सोच और सीखने की गति रखता है। शिक्षक का कार्य उन्हें एक जैसी राह पर चलाना नहीं, बल्कि उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं को पहचानकर उन्हें सही दिशा देना है। उन्होंने विभिन्न उदाहरणों और कहानियों के माध्यम से बताया कि बच्चों के साथ भावनात्मक जुड़ाव कैसे शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाता है।वहीं, हरेंद्र ढेला ने अपने सत्र में “भावनात्मक बुद्धिमत्ता” के महत्व पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि शिक्षण केवल ज्ञान देने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन निर्माण की यात्रा है। यदि शिक्षक स्वयं आत्मसंयम, सहानुभूति और धैर्य का उदाहरण प्रस्तुत करें, तो विद्यार्थी स्वतः उन मूल्यों को आत्मसात करते हैं।उन्होंने शिक्षकों को यह भी समझाया कि बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए डाँट या सजा नहीं, बल्कि संवाद और विश्वास सबसे प्रभावी साधन हैं।कार्यशाला के दौरान शिक्षकों ने सक्रिय रूप से भाग लिया और अपने-अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने शिक्षण से जुड़ी व्यावहारिक समस्याओं पर सवाल पूछे, जिनका रिसोर्स पर्सन ने विस्तार से समाधान दिया। चर्चा के दौरान कई शिक्षकों ने कहा कि यह कार्यशाला उनके लिए दृष्टिकोण बदलने वाला अनुभव रही।
वर्कशॉप में शामिल शिक्षक शशांक पाण्डेय ने बताया कि एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण की नींव अच्छे शिक्षकों से ही रखी जाती है। शिक्षक जब अपने विद्यार्थियों के मन और सोच को समझने लगते हैं, तभी शिक्षा अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त करती है। उन्होंने कहा कि भविष्य में भी सीबीएसई को ऐसे उपयोगी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए जिससे क्षेत्र के शिक्षक नवीन शिक्षण पद्धतियों से जुड़ सकें।
गुरुकुलम स्कूल ख़ूना मानेश्वर की शिक्षिका कविता पुनेठा ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि यह आयोजन अत्यंत प्रेरणादायक रहा। इससे उन्हें विद्यार्थियों के साथ व्यवहार, संवाद और शिक्षण में भावनात्मक दृष्टिकोण अपनाने की नई प्रेरणा मिली।
शिक्षक कौशल भट्ट ने भी कार्यशाला को उपयोगी बताया।
अंत में प्रधानाचार्या पूजा जोशी ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए सभी प्रतिभागी शिक्षकों, रिसोर्स पर्सन और विद्यालय स्टाफ का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्यशालाएँ शिक्षकों के लिए न केवल आत्ममंथन का अवसर देती हैं, बल्कि उन्हें अपने शिक्षण कार्य में नई ऊर्जा भी प्रदान करती हैं।अंत में रिसोर्स पर्सन को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।इस अवसर पर चंद्रभानु,सूरज बोहरा,दीक्षा पंत,सूरज जोशी,प्रीति महरा, गीता महर,अनीता वर्मा,शिवानी सिंह, पूजा, सोनी समेत कई विभिन्न स्कूल के शिक्षक मौजूद रहे।