: चंपावत जिले के दूरस्थ बस्तिया गूठ की 5 वर्षीय नन्हीं छात्रा दिव्यांशी ने गांव में स्कूल व सड़क बनाने की मांग करी
 चंपावत जिले के दूरस्थ ग्रामपंचायत बस्तियागूंठ की रहने वाली 5 वर्षीय नन्हीं छात्रा दिव्यांशी भट्ट ने अपने गांव में स्कूल व सड़क निर्माण की मांग सरकार से करी है क्योंकि दिव्यांशी का गाँव सड़क से करीब 3 किमी नीचे है। गाँव मझेड़ा में सड़क तक नहीं है। गांव से डेढ़ किमी ऊपर एकमात्र प्राइमरी स्कूल है जिसमें मात्र 3 बच्चे और मात्र एक अध्यापक है। इसके अलावा कक्षा 6 से लेकर कक्षा 12 तक के बच्चे 4 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ कर धौन के सरकारी स्कूल में जाते हैं। तथा कुछ बच्चे चंपावत में किराए पर कमरा लेकर पढ़ने को मजबूर हैं। इस गंभीर समस्या के कारण नन्हीं दिव्यांशी भी चंपावत में पढ़ने को मजबूर है जबकि वह गांव में पड़ना चाहती है नन्हीं दिव्यांशी का कहना है अगर उसके गांव में स्कूल व सड़क होती तो वह भी अपने गांव में ही रहती सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर पांडे ने बताया कि इस गांव से धौन तक का रास्ता घने जंगल के बीच से है, कई बार इन बच्चों का सामना रास्ते में बाघ से भी हो चुका है। बाघ और अन्य जंगली जानवरों के भय से बच्चे कई कई दिन तक स्कूल नहीं जा पाते। बरसात के दिनों में गाँव के चारों ओर नदी गधेरों में इतना पानी आ जाता है कि हफ्तों इन गांव वालों को गाँव में घरों में ही कैद होकर रहना पड़ता है। पांडे ने बताया की
चंपावत जिले के दूरस्थ ग्रामपंचायत बस्तियागूंठ की रहने वाली 5 वर्षीय नन्हीं छात्रा दिव्यांशी भट्ट ने अपने गांव में स्कूल व सड़क निर्माण की मांग सरकार से करी है क्योंकि दिव्यांशी का गाँव सड़क से करीब 3 किमी नीचे है। गाँव मझेड़ा में सड़क तक नहीं है। गांव से डेढ़ किमी ऊपर एकमात्र प्राइमरी स्कूल है जिसमें मात्र 3 बच्चे और मात्र एक अध्यापक है। इसके अलावा कक्षा 6 से लेकर कक्षा 12 तक के बच्चे 4 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ कर धौन के सरकारी स्कूल में जाते हैं। तथा कुछ बच्चे चंपावत में किराए पर कमरा लेकर पढ़ने को मजबूर हैं। इस गंभीर समस्या के कारण नन्हीं दिव्यांशी भी चंपावत में पढ़ने को मजबूर है जबकि वह गांव में पड़ना चाहती है नन्हीं दिव्यांशी का कहना है अगर उसके गांव में स्कूल व सड़क होती तो वह भी अपने गांव में ही रहती सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर पांडे ने बताया कि इस गांव से धौन तक का रास्ता घने जंगल के बीच से है, कई बार इन बच्चों का सामना रास्ते में बाघ से भी हो चुका है। बाघ और अन्य जंगली जानवरों के भय से बच्चे कई कई दिन तक स्कूल नहीं जा पाते। बरसात के दिनों में गाँव के चारों ओर नदी गधेरों में इतना पानी आ जाता है कि हफ्तों इन गांव वालों को गाँव में घरों में ही कैद होकर रहना पड़ता है। पांडे ने बताया की
 इस छोटी सी बच्ची का स्वयं का दर्द और भय आप इसकी मासूमियत भरी बातों से समझ सकते हैं कि समस्या वाकई में कितनी गम्भीर है। ये गांव में ही रहकर पढ़ना चाहती है , इतनी दूर चढ़ाई चढ़कर धौन और चंपावत नहीं जाना चाहती है नन्हीं दिव्यांशी की मांग का सरकार व प्रशासन ने संज्ञान लेना चाहिए वही नन्हीं दिव्यांशी की गुहार क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ,सरकार व प्रशासन को आईना दिखाने के लिए काफी है की आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी गांव वाले एक अदद स्कूल व सड़क के लिए संघर्ष कर रहे हैं पर सुनने वाला कोई नहीं सरकार व प्रशासन ने संज्ञान लेना चाहिए तथा खुद सीएम धामी ने अपनी विधानसभा में रहने वाली इस नन्ही छात्रा की मांग को पूरा करना चाहिए
इस छोटी सी बच्ची का स्वयं का दर्द और भय आप इसकी मासूमियत भरी बातों से समझ सकते हैं कि समस्या वाकई में कितनी गम्भीर है। ये गांव में ही रहकर पढ़ना चाहती है , इतनी दूर चढ़ाई चढ़कर धौन और चंपावत नहीं जाना चाहती है नन्हीं दिव्यांशी की मांग का सरकार व प्रशासन ने संज्ञान लेना चाहिए वही नन्हीं दिव्यांशी की गुहार क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ,सरकार व प्रशासन को आईना दिखाने के लिए काफी है की आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी गांव वाले एक अदद स्कूल व सड़क के लिए संघर्ष कर रहे हैं पर सुनने वाला कोई नहीं सरकार व प्रशासन ने संज्ञान लेना चाहिए तथा खुद सीएम धामी ने अपनी विधानसभा में रहने वाली इस नन्ही छात्रा की मांग को पूरा करना चाहिए 
             
                     
             
             
             
             
             
             
            